आखिर क्यो घट रही यूपीएससी की हिंदीभाषा में तैयारी करने वालो की संख्याहै।

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LBSNAA  में ट्रेनिंग ले रहे 370 अधिकारियों में से इस साल सिर्फ आठअधिकारियों नेसिविल की परीक्षा हिंदी में दी थी।

देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में सेएक मानी जाने वाली संघ लोक सेवा आयोग यानी (यूपीएससी) की परीक्षा,जिसमें लाखों की कतार में परीक्षार्थी भाग लेते हैं। इनमें जहां इंग्लिश मीडियम वाले उम्मीदवारों की संख्या सबसे ज्यादा होती जा रही है, वही हिंदीभाषामें तैयारी करने वालो की संख्या ना के बराबर होती जा रही है, आपको बता दें ‘ द इंडियन एक्सप्रेस ’ की रिपोर्ट के अनुसार मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी विश्व में ट्रेनिंग ले रहे 370 अधिकारियों में से इस साल सिर्फ आठअधिकारियों नेसिविल की परीक्षा हिंदी में दी थी। ऐसा क्यों हो रहा है, क्या कारण है और ऐसे में हिंदी माध्यम के बच्चों को क्या-क्या परेशानी का सामना करना पड़ता है

हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों का कम होना दरअसल 2011 के बाद से शुरू हुआ है। इसी साल सीसैट (CSAT)सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट लाने का ऐलान हुआ था।इसमें मैथ्स रीजनिंग और इंग्लिश को सम्मिलित किया गया। आपको बता दें, इसकेसवालों का हिंदी में बेहद ही खराब तरीके से अनुवाद होता है, जिसमे की सवाल मूल रूप से अंग्रेजी में सेट किए जाते हैं और हिंदी में इनका अनुवाद किया जाता है।

समस्या की बात तो यह है,कि अनुवाद ज्यादातर गूगल ट्रांसलेशन से ही किए जाते हैं, जिससे वह सही तरीके से हिंदी भाषा में सवाल नहीं बन पाता है, अर्थात उन सवालो का मतलब निकालना किसी मेधावी छात्र के लिए भी टेढ़ी खीर जैसे हो सकता है ।और यह भी सही है जब सवाल साफ ही नहीं होगा तो जवाब के लिए परेशानी तो आएगी ही।

सीसैट आने से पहले की बात करें तो 2010 तक छात्र प्री एग्जाम में एक ऑप्शनल सब्जेक्ट और सामान्य अध्ययन की तैयारी करते थे । मुख्य परीक्षा में दो ऑप्शनल सब्जेक्ट और सामान्य अध्ययन पर फोकस करते थे। तब क्योंकि स्टडी करने और जी.एस की पढ़ाई अखबार,पत्रिका और अन्य किताबों से करने से, इसके लिए गंभीर छात्रों को कामयाबी मिल जाती थी।

2013 में सिविल सर्विसेज मैंस की परीक्षा में भी बदलाव किए गए जिसमें दो वैकल्पिक विषयों की बजाए एक विषय को विकल्प के तौर पर ही चुनना अनिवार्य हो गया। और 2017 में अचानक से सिलेबस बदलने से हिंदी मीडियम से परीक्षा में बैठने वालों की संख्या में भी काफी कमी आई।

आपको बता दें LBSNAAकी वेबसाइट के मुताबिक 2013 में हिंदी मीडियम में सिविल परीक्षा  पास करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 17 प्रतिशत थी और इसके बाद2018 में हिंदी माध्यम के  विद्यार्थियों में भारी गिरावट आई जिसमें सिर्फ महज 2.16 परसेंट ही रह गये, और यह अंतर रैंकिंग में भी दिखा है, हैरान करने वाली बात तो यह है कि यूपीएससी सिविल सर्विसेज परीक्षा में अब तक हिंदी माध्यम से परीक्षा देकर कोई भी टॉप नहीं कर पाया अब तक की सबसे ऊंची रैंक 3 रही है।

यूपीएससी पर ऐसे आरोप भी लगाए जा चुके हैं कि मुख्य परीक्षा की कॉपी जांचने के साथ साथ इंटरव्यू में भी हिंदी मीडियम वालों के साथ भेदभाव किया जाता है। कितना सच है कितना झूठ यह तो हम नहीं कुछ कह सकते हैं। वैसे तो मुख्य परीक्षा की कॉपियां चेक करने के लिए पैनल में जिन लोगों को शामिल किया जाता है। उनकी भाषा भी अंग्रेजी होती है ऐसे में हिंदी में उत्तर उतने ही सहज हो यह कोई जरूरी तो नहीं इससे अंक में भी काफी बड़ा फर्क आ सकता है। आरोप ये भी माना जाता है कि बोर्ड के सदस्यों को हिंदी मीडियम वालों को दूसरी नजर से देखते हैं और मार्क्स देने में भेदभाव करते हैं । क्या यह सही है कई कैंडीडेट्स का ऐसा अनुभव रहा है कि जब इंटरव्यू के दौरान हिंदी में बोलना शुरू करते हैं तो उन्हें अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है ।हिंदी को लेकर ताना सुनना आम बात है इंटरव्यू बोर्ड के कई सदस्यों की भाषा हिंदी ही नहीं होती है ।ऐसे में कैंडिडेट की बात समझने के लिए बोर्ड के सदस्य दूरभाष का सहारा लेते हैं। अगर दूरभाष ने बातों के मतलब में कोई गलती कर दी तो बड़ा फर्क पैदा हो जाता है । दूसरी और इंग्लिश में इतना मुश्किल नहीं होता है। जहां एक एक नंबर के लिए सालो की महनत हो वहां इंटरव्यू के अंक से बड़ा अंतर पैदा हो सकता है।

स्टडी मटेरियल और नोट्स की भी हिंदी में काफी कमी है। हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को अध्ययन करने की सामग्री की कमी से भी काफी गुजरना पड़ता है। ज्यादातर अच्छे नोट्स व किताबें अंग्रेजी में ही मिलती है,जहां दूसरी और हिंदी की कमी के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता हैऔर फिरअगर अखबारों की बात करें तो,‘द हिंदू’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को काफी महत्व दिया गया है।जो अंग्रेजी में मौजूद है, और इनके मुकाबले में हिंदी का कोई अखबार शायद हीहो ,हिंदी में पढ़ने वालेविद्यार्थियों के लिए भी कोई ऐसी खास वेबसाइट भी नहीं मौजूद है।ऐसे में हिंदी मीडियम के छात्रों का कहना है, कि हिंदी में स्टडी मटेरियल की कमी बहुत खलती है जिसके कारण हिंदी में  किताबें और नोट्स बाजार में उपलब्ध ही नहीं होते हैं जीसके कारण यूपीएससी के सिलेबस की डिमांड पूरी नहीं  हो पाती है।